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पति से प्राप्त भरण-पोषण की राशि ब्याज सहित लौटना होगा ………दिल्ली उच्च न्यायालय।

Adv. Dilip Kumar by Adv. Dilip Kumar
October 7, 2021
in Judgement
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पति से प्राप्त भरण-पोषण की राशि ब्याज सहित लौटना होगा ………दिल्ली उच्च न्यायालय।
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पत्नी ने पति के विरुद्ध घरेलू हिंसा का वाद दिल्ली के तीस हजारी न्यायालय में प्रस्तुत किया था। पत्नी का कथन था कि वे दोनों वर्ष 2009 में एक दूसरे से मिले थे और वर्ष 2014 में शादी कर लिए। पत्नी को अपने पूर्व पति से एक लड़का है जो वर्तमान में 13 वर्ष का है और दिल्ली के एक प्रतिष्ठित विद्यालय में पढ़ता है। दोनों के बीच एक एग्रीमेन्ट बना और दोनों दिल्ली में ही किराये के एक मकान में पति-पत्नी के रूप में रहने लगे। कुछ समय बाद दोनों के बीच विवाद पैदा हो गया और पत्नी, पति के विरुद्ध FIR दर्ज करवाई और साथ-साथ घरेलू हिंसा का उपरोक्त वाद दिल्ली के तीस हजारी न्यायालय में प्रस्तुत किया। पत्नी के अनुसार पति की आय 10 लाख रुपया प्रति माह की है। पत्नी ने पति के विरुद्ध अंतरिम भरण-पोषण का आवेदन और उक्त किराये के घर से नहीं निकालने के लिए पति के विरुद्ध निषेधाज्ञा हेतु आवेदन भी न्यायालय में प्रस्तुत किया।  न्यायालय द्वारा दिनांक 31.07.2020  निषेधाज्ञा हेतु आवेदन को स्वीकार कर लिया गया और पति को आदेशित किया गया कि वह पत्नी को घर से नहीं निकालें और दिनांक 26.10.2020 को अंतरिम भरण-पोषण का आवेदन स्वीकार कर लिया गया और पत्नी के पक्ष में 10,000.00 (दस) हजार रुपया प्रति माह भरण – पोषण की राशि प्रदान करने का एक – पक्षीय आदेश पारित किया गया साथ-साथ पति को अपना पक्ष रखे हेतु सम्मन निर्गत किया गया।

उपरोक्त दोनों आदेश के विरुद्ध पति ने जिला जज के यहाँ अपील प्रस्तुत किया। जिला जज द्वारा पति का उपरोक्त दोनों अपील खारिज कर दिया गया। जिला जज के आदेश से पीड़ित होकर पति ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

पति का कथन था कि पत्नी डीवी अधिनियम के तहत किसी भी राहत का हकदार नहीं है क्योंकि वह डीवी अधिनियम में परिभाषित एक पीड़ित व्यक्ति नहीं है और दोनों के बीच कभी भी घरेलू-संबंध नहीं रहा है। पति का तर्क था कि  DV अधिनियम के तहत अनुतोष पाने के लिए आवेदक को पीड़ित व्यक्ति की श्रेणी में आना चाहिए और दोनों के बीच का संबंध DV कानून के अनुसार घरेलू-संबंध होना चाहिए।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने पति के कथन पर विचार करते हुए मजिस्ट्रेट को आदेशित किया कि यदि मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट, साक्ष्य के बाद, इस निष्कर्ष पर पहुंचता है कि पत्नी डीवी अधिनियम के तहत संरक्षण का हकदार नहीं था, तो उसके द्वारा प्राप्त राशि पति को सूद सहित वापस कर दें। ब्याज की दर मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा तय करने का आदेश भी पारित किया गया।

✍दिलीप कुमार

For Detail Judgement kindly click below:-

http://164.100.69.66/jupload/dhc/SMP/judgement/07-06-2021/SMP07062021CRLMM4202021_130929.pdf

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