भारत में “वैवाहिक मृत्यु” (तलाक़) के मामलें निरंतर बढ़ते जा रहे हैं. मैंने “वैवाहिक मृत्यु” चाहने वाले सैकड़ो व्यक्ति से बात किया, उनका पक्ष जाना और उसपर अध्ययन किया. मुझे यह लिखते हुए थोड़ी भी परेशानी नहीं हो रही है कि “वैवाहिक मृत्यु” का चाहक, मानसिक रूप से बीमार होता है. उसे विवाह नामक व्यवस्था पर विश्वास ही नहीं है. शादी से पहले एक-दूसरे को जानने और समझने के नाम पर नजदीक आने का प्रयास भी एक मानसिक बीमारी है. मैं मात्र दो उदाहरण देना चाहता हूँ:-
i. 08वीं कक्षा का छात्र अपनी सहपाठी छात्रा से, स्नातक के बाद मई 2018 में शादी करता है और जून 2018 में विवाह-विच्छेद के लिए सहमत हो जाता है.
ii. एक प्रतिष्ठित एयरलाइन्स की एक महिला अधिकारी ने फ़ोन पर बताई कि वह अपनी स्तर के अधिकारी से लम्बे समय तक नजदीक रहने के बाद शादी किया और अपनी गर्भपात इसलिए करवाई कि वह घटिया व्यक्ति के संतान को जन्म नहीं देना चाहती थी.
जहाँ तक मेरा अनुभव है “वैवाहिक मृत्यु” नामक बीमारी से पीड़ित व्यक्ति सिग्नल देना प्रारंभ कर देता है. उसके प्रारंभिक लक्षण निम्नलिखित हो सकते है :-
I. वह परिवार तो मेरे लायक था ही नहीं.
II. मुझे तो अमुक का रिश्ता आया था, जिसे ठुकराकर मैंने भारी भूल किया है.
III. अमुक व्यक्ति ने कहाँ कि तुम कहाँ फ़स गए. इत्यादी.
मेरे समझ से यह जान-बूझकर की गयी गलती नहीं है. इसे नजरअंदाज करना उचित नहीं है. यदि समये रहते दोनों पक्षों का काउंसिलिंग किया जाये तो “वैवाहिक मृत्यु” को रोका जा सकता है.
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